ये शहर मुझसे मेरी ओकात पूछता हे,




ये शहर मुझसे मेरी ओकात पूछता हे,
मुझे छोटा समझ बखान अपने कद का

बहुत आसान हुआ आज मुझे खुद को समझना,
यू केसे नादान समझ छीन लिया हिस्सा मेरी जद का

मे खुद मे रहा जब तक महफूज था,
बड़ा बेदर्द था वो नजारा उस पार सरहद का

वो भी चला सब बड़ा सरल समझ कर,
आसान तुझे भी नही चेहरा पहचानना अपने हमदर्द का

यहा सब कसूर जानाब अपना रहा खुद का,
ये किस्सा रहा हे हद से वफादारी की ज़िद का

p@W@n

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